मनोरंजक कथाएँ >> नन्हे सूअर और चतुर भेड़िया नन्हे सूअर और चतुर भेड़ियाए.एच.डब्यू. सावन
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प्रस्तुत हैं बच्चों के लिए बालपयोगी एवं रोचक पुस्तक जो कि बहुत ही मजेदार और चटपटी हैं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नन्हे सूअर और चतुर भेड़िया
बहुत दिन बीते, सूअर के प्यारे से नन्हे तीन बच्चे अपने माता-पिता के साथ
अपने छोटे-से घर में रहते थे। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते गए वैसे-वैसे घर
छोटा पड़ने लगा।
गर्मी के दिन थे। इस दौरान तीनों भाई जंगलों और मैदानों में यहां-वहां घूमते रहे और मस्ती करते रहे। तीनों बहुत खुश थे और जिंदगी का मजा ले रहे थे। यूं ही मौज-मस्ती में काफी समय बीत गया।
गर्मी का मौसम समाप्त होने वाला था, जंगल के सभी प्राणी आने वाली सर्दियों के लिए तैयारियों में जुट गए। वे अपने लिए भोजन इकट्ठा करने व सिर छिपाने की चिंता में थे। लेकिन तीनों नन्हे सूअर इससे बेफिक्र थे।
तीनों दोस्त बनाने में तो माहिर थे ही, साथ ही तीनों आपस में भी गहरे दोस्त थे। जो भी उनसे मिलता, खुश हो जाता और उनका दोस्त बन जाता।
फिर एक दिन....‘ओफ्फो ! अब यह कमरा बहुत भर गया है।’’ मां चिल्लाई। बोली, ‘‘बच्चो ! अब तुम बड़े हो गए हो। जाओ, अपना-अपना घर बसाओ। खुद अपने पैरों पर खड़े होकर दिखाओ।’’
‘‘मैं अपना घर खुद बनाऊंगा,’’ पहले नन्हे सूअर ने घोषणा की।
‘‘मैं भी बनाऊंगा,’’ दूसरा बोला।
‘‘मैं भी।’’ तीसरा क्यों पीछे रहता।
गर्मी के दिन थे। इस दौरान तीनों भाई जंगलों और मैदानों में यहां-वहां घूमते रहे और मस्ती करते रहे। तीनों बहुत खुश थे और जिंदगी का मजा ले रहे थे। यूं ही मौज-मस्ती में काफी समय बीत गया।
गर्मी का मौसम समाप्त होने वाला था, जंगल के सभी प्राणी आने वाली सर्दियों के लिए तैयारियों में जुट गए। वे अपने लिए भोजन इकट्ठा करने व सिर छिपाने की चिंता में थे। लेकिन तीनों नन्हे सूअर इससे बेफिक्र थे।
तीनों दोस्त बनाने में तो माहिर थे ही, साथ ही तीनों आपस में भी गहरे दोस्त थे। जो भी उनसे मिलता, खुश हो जाता और उनका दोस्त बन जाता।
फिर एक दिन....‘ओफ्फो ! अब यह कमरा बहुत भर गया है।’’ मां चिल्लाई। बोली, ‘‘बच्चो ! अब तुम बड़े हो गए हो। जाओ, अपना-अपना घर बसाओ। खुद अपने पैरों पर खड़े होकर दिखाओ।’’
‘‘मैं अपना घर खुद बनाऊंगा,’’ पहले नन्हे सूअर ने घोषणा की।
‘‘मैं भी बनाऊंगा,’’ दूसरा बोला।
‘‘मैं भी।’’ तीसरा क्यों पीछे रहता।
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